वांछित मन्त्र चुनें
आर्चिक को चुनें

अ꣡जी꣢जनो꣣ हि꣡ प꣢वमान꣣ सू꣡र्यं꣢ वि꣣धा꣢रे꣣ श꣡क्म꣢ना꣣ प꣡यः꣢ । गो꣡जी꣢रया꣣ र꣡ꣳह꣢माणः꣣ पु꣡र꣢न्ध्या ॥१३६५

(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)
स्वर-रहित-मन्त्र

अजीजनो हि पवमान सूर्यं विधारे शक्मना पयः । गोजीरया रꣳहमाणः पुरन्ध्या ॥१३६५

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ꣡जी꣢꣯जनः । हि । प꣣वमान । सू꣡र्य꣢꣯म् । वि꣣धा꣡रे꣢ । वि꣣ । धा꣡रे꣢꣯ । श꣡क्म꣢꣯ना । प꣡यः꣢꣯ । गो꣡जी꣢꣯रया । गो । जी꣣रया । र꣡ꣳह꣢꣯माणः । पु꣡र꣢꣯न्ध्या । पु꣡र꣢꣯म् । ध्या꣣ ॥१३६५॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1365 | (कौथोम) 6 » 1 » 7 » 2 | (रानायाणीय) 11 » 2 » 4 » 2


बार पढ़ा गया

हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अगले मन्त्र में परमेश्वर की स्तुति की गयी है।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (पवमान) पवित्रकर्ता, सर्वान्तर्यामी परमेश्वर ! आपने (सूर्यम्) सूर्य को (अजीजनः हि) उत्पन्न किया है और (शक्मना) अपनी शक्ति से (विधारे) विधारक अन्तरिक्ष में (पयः) मेघ-जल को (अजीजनः) उत्पन्न किया है। आप (गोजीरया) भूमण्डल के जीवन की इच्छा से (पुरन्ध्या) बहुत अधिक प्रज्ञा तथा क्रिया द्वारा (रंहमाणः) शीघ्रकारी होते हो ॥२॥

भावार्थभाषाः -

ब्रह्माण्ड में स्थित सूर्य, विद्युत्, नक्षत्र, बादल आदि सब विलक्षण वस्तुएँ परमात्मा ने ही रची हैं, इनके निर्माण में किसी मनुष्य का सामर्थ्य नहीं है। वह सबकी हितकामना से बुद्धिपूर्वक चेष्टा करता है ॥२॥

बार पढ़ा गया

संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ परमेश्वरं स्तौति।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (पवमान) पावक सर्वान्तर्यामिन् परमेश्वर ! त्वम् (सूर्यम्) आदित्यम् (अजीजनः हि) उत्पादितवानसि खलु, अपि च (शक्मना) स्वशक्त्या (विधारे) विधारके अन्तरिक्षे (पयः) मेघजलम् (अजीजनः) उत्पादितवानसि। त्वम् (गोजीरया२) गोजीवया, भूमण्डलस्य जीवनेच्छया (पुरन्ध्या) भूयस्या प्रज्ञया क्रियया च। [पुरन्धिर्बहुधीः। निरु० ६।१३। धीः इति कर्मनाम प्रज्ञानाम च। निघं० २।१, ३।९।] (रंहमाणः) त्वरमाणः भवसीति शेषः ॥२॥३

भावार्थभाषाः -

ब्रह्माण्डस्थानि सूर्यविद्युन्नक्षत्रपर्जन्यादीनि सर्वाणि विलक्षणानि वस्तूनि परमात्मनैव विरचितानि, नैषां निर्माणे कस्यचिन्मनुष्यस्य सामर्थ्यमस्ति। स सर्वेषां हितकाम्यया बुद्धिपूर्वकं चेष्टमानो वर्त्तते ॥२॥